Bihar News: जब लोकतंत्र की बात होती है तो सबसे पहली चीज़ जो हमारे दिल और दिमाग में आती है, वह है हर नागरिक का वोट डालने का अधिकार। लेकिन सोचिए, अगर अचानक आपसे यह अधिकार ही छीन लिया जाए तो कैसा लगेगा? कुछ ऐसा ही दर्द और चिंता इन दिनों बिहार के करोड़ों लोगों के बीच फैली हुई है।
मनोज झा की सुप्रीम कोर्ट में अपील लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की पुकार
Bihar राजद के सांसद मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के तहत मतदाता सूचियों में बदलाव किया जा रहा है। उनका साफ कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाज़ी में, बिना किसी विचार-विमर्श के और असंवेदनशील तरीके से लागू की जा रही है, जो करोड़ों मतदाताओं के संवैधानिक अधिकार को छीनने का काम कर रही है।
Bihar गरीब, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित
मनोज झा ने आरोप लगाया है कि यह पूरी प्रक्रिया विशेष रूप से गरीब, दलित, मुसलमान और प्रवासी मजदूर समुदाय को निशाना बना रही है। यह सिर्फ एक तकनीकी या प्रशासनिक मामला नहीं है बल्कि इसके पीछे एक स्पष्ट सामाजिक पक्षपात भी दिख रहा है। उन्होंने कहा कि यह ‘इंजीनियर्ड एक्सक्लूजन’ है, जिसे सोच-समझकर लागू किया जा रहा है ताकि इन वर्गों के लाखों लोग मतदान प्रक्रिया से बाहर हो जाएं।
Bihar News दस्तावेज़ों की जटिलता और आम जनता की परेशानियाँ
Bihar इस संशोधन प्रक्रिया में जिन 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है, वे ज़्यादातर गरीब और ग्रामीण आबादी के पास मौजूद नहीं हैं। सबसे अहम बात यह है कि आधार कार्ड, जिसे बिहार के लगभग 90% लोगों के पास माना जाता है, उसे इस प्रक्रिया में मान्य ही नहीं माना गया है। मनरेगा जॉब कार्ड और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेज़ों को भी खारिज कर दिया गया है।
Bihar News के सामाजिक-आर्थिक हालात असमानता की गहराई
मनोज झा ने अदालत को यह भी बताया कि बिहार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हर व्यक्ति के पास पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र या सरकारी पहचान पत्र मौजूद हों। उदाहरण के तौर पर, केवल 2.4% बिहारवासियों के पास पासपोर्ट है और लगभग 14% लोगों ने ही दसवीं कक्षा पास की है। इसी तरह, निवास प्रमाण पत्र या जाति प्रमाणपत्र भी सीमित आबादी के पास ही मौजूद हैं।
प्रवासी मजदूरों के लिए और भी मुश्किलें
Bihar News एक ऐसा राज्य है जहां लाखों लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में प्रवास करते हैं। ऐसे में जब यह प्रक्रिया शुरू की गई है तो उन लोगों के लिए नागरिकता साबित करना और अधिक कठिन हो गया है। वे न तो समय पर दस्तावेज़ उपलब्ध करा सकते हैं और न ही प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। इससे एक बड़े हिस्से को लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।
आगामी विधानसभा चुनाव और लोकतांत्रिक संकट
Bihar News में विधानसभा चुनाव कुछ ही महीनों में होने वाले हैं। ऐसे में अगर करोड़ों लोगों के नाम मतदाता सूची से कट गए तो यह केवल एक तकनीकी गलती नहीं बल्कि लोकतंत्र के मूल अधिकारों का गहरा संकट बन जाएगा। यह न केवल जनता के विश्वास को तोड़ेगा बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करेगा।
लोकतंत्र की नींव हर नागरिक का अधिकार
Bihar भारत के संविधान में हर नागरिक को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। वोट डालने का अधिकार हर नागरिक की आवाज़ है और अगर यह अधिकार छिनता है तो यह लोकतंत्र की आत्मा को चोट पहुंचाता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से यह उम्मीद की जा रही है कि वह इस मसले पर संवेदनशील और न्यायपूर्ण निर्णय लेगा। यह समय है जब लोकतंत्र के हर नागरिक की आवाज़ को सुना जाना चाहिए और किसी के भी संवैधानिक अधिकारों को छीना नहीं जाना चाहिए। चुनाव आयोग और सरकार को इस मुद्दे पर गहराई से विचार करना होगा ताकि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सके।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों और रिपोर्ट्स पर आधारित है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले आधिकारिक सूचना और सत्यापन अवश्य करें।
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